Wednesday, 23 October 2019
Wednesday, 16 October 2019
राम मंदिर फैसले द्वारा , इतिहास में प्रवेश करने की हड़बड़ी में मुख्य न्यायधीश के नेतृत्व में, कम्युनिस्ट, आग्रही, संस्कृति द्रोही, सबरी माला मंदिर की परम्परा को नष्ट करने वाले समलैंगिकता के पोषक, व्यभिचार के समर्थक, औसत बौद्धिक स्तर के आग्रही न्यायाधीशों से बहुत अच्छे फैसले की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
सबसे पहले विवाद का स्वरुप विषय वस्तु तय करनी होगी।
ज़मीन का बटवारा नहीं हो सकता, क्योंकि हाई कोर्ट के फैसले को स्टे कर विवाद स्वीकार करते समय सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस लोढ़ा ने इसी आधार पर मुकदमा स्वीकार किया था, कि ये फ़ैसला सिरे से ही गलत है, ये विवाद ज़मीन बॅटवारे का नहीं है, न ही किसी वादी ने भूमि बाँटने की बात कही है, ये विवाद भूमि के मालिकाना हक़ का है।
मज़ेदार बात ये हैं की विवादित भूमि के भू अभिलेख दोनों पक्षों के पास नहीं हैं। और १८८६ से ले कर अब तक जितने भी मुकदमें लड़े गए सब कब्ज़े के लिए थे , मालिकान हक या टाइटल के लिए नहीं।
अब निर्णय का आधार क्या होगा ? यक्ष प्रश्न हैं
अब दो मुख्य मुद्दे हैं जिससे फ़ैसले पर पंहुचा जा सकता है,
१ ) कब्ज़े के आधार पर !
कब्ज़े का आधार वर्ष कौन सा मानते हैं, ये निश्चित करेगा की कब्ज़ा किसको
दिया जाये। २३ दिसंबर १९४९ से श्री राम चंद्र विराजमान का मुख्य गुम्बद में कब्ज़ा है। वो एक मस्जिद के ढांचे पर काबिज़ है, है न अजीब !!
यदि, २३ दिसंबर १९४९ से पहले के कब्ज़े को आधार बनाया गया तो गुम्बद वाला भाग वफ्फ बोर्ड के कब्ज़े में था। परन्तु वर्तमान कब्ज़ा ही आधार माना जाता है।
दूसरा, गुम्बद से एकदम लगी आसपास की भूमि निर्विवाद रूप से निर्मोही अखाड़े की है और वो उसपर काबिज़ था और है। अब ये प्रश्न उठता है कि मस्जिद के ढांचे से लगी भूमि मंदिर की क्यों है ?
फिर , निर्मोही अखाड़े से लगी बाहर ज़मीन जहाँ भूमि पूजन हुआ है कब्रिस्तान बताया जा रहा है। मंदिर से सटा कब्रिस्तान क्या कर रहा है। ये कैसे हुआ ?
कफ़न दफ़न का प्रमाण नहीं हैं।
मुकदमे का एक पहलु कि ज़मीन बटेगी नहीं, या तो राम लला विराजमान को मिलेगी या निर्मोही आखाड़े को। अब मुकदमे में राम लला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा आमने सामने हैं। भूमि की समग्रता के लिए एक को अपना अस्तित्व समाप्त करना होगा।
राम लला विराजमान को कानूनी अस्तित्व साबित करने मे पक्षकार वकील असफल रहें है, ये बिडंबना ही है कि रामलला के पक्षकार सभी वकील औसत से भी नीचे स्तर के हैं।
२ ) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट ।
तीन रिपोर्ट हैं ! पता नहीं किसको मान्यता देते हैं। वैसे दो मंदिर के पक्ष में हैं एक २००३ वाली, थोड़ा सा भ्रमित करती है, क्योकि बौद्ध और जैन भी वहाँ मंदिर नहीं बल्कि अपने विहार होने का दावा कर रहे हैं।
दो गौडं मुद्दे हैं
१ ) पौराणिक मानक मंदिर के पक्ष में है।
२ ) ऐतिहासिक मानक मस्जिद के पक्ष में है।
यक्ष प्रश्न ?
क्या भाजपा इतना शानदार मुद्दा इतना आसनी से समाप्त होने देगी ?
शेष राम जाने !!!
सबसे पहले विवाद का स्वरुप विषय वस्तु तय करनी होगी।
ज़मीन का बटवारा नहीं हो सकता, क्योंकि हाई कोर्ट के फैसले को स्टे कर विवाद स्वीकार करते समय सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस लोढ़ा ने इसी आधार पर मुकदमा स्वीकार किया था, कि ये फ़ैसला सिरे से ही गलत है, ये विवाद ज़मीन बॅटवारे का नहीं है, न ही किसी वादी ने भूमि बाँटने की बात कही है, ये विवाद भूमि के मालिकाना हक़ का है।
मज़ेदार बात ये हैं की विवादित भूमि के भू अभिलेख दोनों पक्षों के पास नहीं हैं। और १८८६ से ले कर अब तक जितने भी मुकदमें लड़े गए सब कब्ज़े के लिए थे , मालिकान हक या टाइटल के लिए नहीं।
अब निर्णय का आधार क्या होगा ? यक्ष प्रश्न हैं
अब दो मुख्य मुद्दे हैं जिससे फ़ैसले पर पंहुचा जा सकता है,
१ ) कब्ज़े के आधार पर !
कब्ज़े का आधार वर्ष कौन सा मानते हैं, ये निश्चित करेगा की कब्ज़ा किसको
दिया जाये। २३ दिसंबर १९४९ से श्री राम चंद्र विराजमान का मुख्य गुम्बद में कब्ज़ा है। वो एक मस्जिद के ढांचे पर काबिज़ है, है न अजीब !!
यदि, २३ दिसंबर १९४९ से पहले के कब्ज़े को आधार बनाया गया तो गुम्बद वाला भाग वफ्फ बोर्ड के कब्ज़े में था। परन्तु वर्तमान कब्ज़ा ही आधार माना जाता है।
दूसरा, गुम्बद से एकदम लगी आसपास की भूमि निर्विवाद रूप से निर्मोही अखाड़े की है और वो उसपर काबिज़ था और है। अब ये प्रश्न उठता है कि मस्जिद के ढांचे से लगी भूमि मंदिर की क्यों है ?
फिर , निर्मोही अखाड़े से लगी बाहर ज़मीन जहाँ भूमि पूजन हुआ है कब्रिस्तान बताया जा रहा है। मंदिर से सटा कब्रिस्तान क्या कर रहा है। ये कैसे हुआ ?
कफ़न दफ़न का प्रमाण नहीं हैं।
मुकदमे का एक पहलु कि ज़मीन बटेगी नहीं, या तो राम लला विराजमान को मिलेगी या निर्मोही आखाड़े को। अब मुकदमे में राम लला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा आमने सामने हैं। भूमि की समग्रता के लिए एक को अपना अस्तित्व समाप्त करना होगा।
राम लला विराजमान को कानूनी अस्तित्व साबित करने मे पक्षकार वकील असफल रहें है, ये बिडंबना ही है कि रामलला के पक्षकार सभी वकील औसत से भी नीचे स्तर के हैं।
२ ) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट ।
तीन रिपोर्ट हैं ! पता नहीं किसको मान्यता देते हैं। वैसे दो मंदिर के पक्ष में हैं एक २००३ वाली, थोड़ा सा भ्रमित करती है, क्योकि बौद्ध और जैन भी वहाँ मंदिर नहीं बल्कि अपने विहार होने का दावा कर रहे हैं।
दो गौडं मुद्दे हैं
१ ) पौराणिक मानक मंदिर के पक्ष में है।
२ ) ऐतिहासिक मानक मस्जिद के पक्ष में है।
यक्ष प्रश्न ?
क्या भाजपा इतना शानदार मुद्दा इतना आसनी से समाप्त होने देगी ?
शेष राम जाने !!!
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