मेरे इन शब्दों से कुछ लोग आहात होगें। पर क्या करूँ मेरा बोध इसे ही सत्य पता है। क्षमा प्रार्थी हूँ।
हमें अपने वैदिक प्रकृति दर्शन को बौद्धों द्वारा किये गए व्यभिचार से मुक्त कराना होगा। इन्होने वैदिक दर्शन की मूल विषय वस्तु को ही विकृत कर दिया। इससे घृणित और जघन्य कृत्य किसी ने भी वैदिको (हिन्दुओं ) के साथ नहीं किया।
हूणों के आक्रमण से नष्ट हुई तक्षशिला में वैदिक ज्ञान और संस्कृति का बड़ा अंश नष्ट हो गया। शेष बौद्धों ने क्रमिक रूप से नालंदा में विकृत कर नष्ट कर दिया । नालंदा ही वो अड्डा था जहां वैदिक ग्रंथो के साथ व्यभिचार होता था भला हो तुर्की हमलावर बख़्तियार ख़िलजी का जिसने नालंदा पर हमलाकर उसे नष्ट कर दिया वरना आज वैदिक प्रकृति दर्शन का कोई नाम लेवा नहीं होता।
मज़ेदार बात ये है की पूरे दुष्चक्र में स्वयं बुद्ध का कोई योगदान नहीं था। बुद्ध की मृत्यु के २५० से २७५ साल बाद अचानक बुद्ध के नाम पर ये सब कुकृत्य शुरू किया गया। इस पूरी बौध्द व्यवस्था के सूत्रधार भी नई पीढ़ी के विद्रोही, और प्रतिक्रियावादी ब्राह्मण ही थे जो कठिन वैदिक अनुशाषित जीवन पद्द्ति का पालन नहीं करना चाहते थे।
“बुद्ध एक सौतेली माँ द्वारा पाले गए असुरक्षित और अस्थिर भावनात्मक मनस्थिति के व्यक्ति थे जो मृत्यु भय से ग्रसित हो मृत्यु पर विजय प्राप्त करने हेतु घर से भागे थे। तमाम सत्संग और अंत में घोर तपस्या से उन्हे मात्र इस बात का बोध हुआ की मृत्यु असम्भावी है, दुःख देह का धर्म है सब कुछ क्षणिक है पुनर्जन्म कुछ नहीं होता। । खाओ पियो मस्त हो कर जीवन यापन करो। बुद्ध एक परिव्राजक थे। बस सन्यासिओं की तरह भ्रमण किया करते और कुछ नहीं। उन्होने अपने जीवन काल में किसी वाद या पंथ की स्थापना नहीं की।
यवन हमारे दर्शन को यूनान ले गए , अपने दार्शनिक दृष्टिकोण को इससे परिष्कृत किया, और अपनी शिक्षा व्यवस्था में इसको स्थान दिया। परन्तु विकृत नहीं किया .
मुस्लिम आक्रन्ताओं , अशिक्षित और बर्बर थे उन्हे ग्रंथो से मतलब नहीं था , उन्हे तो ग्रंथो का पालन करने वाले वैदिको को नष्ट करना था।
ईसाइयों ने भी वैदिकों के दर्शन के साथ दुरव्यवहार किया उन्होने विषयवस्तु चुराई और उनकी गणितीय व्याख्या कर पूरी की पूरी अपने नाम से प्रकाशित करवा दी। और हम इस कृत्य को चुनौती न दे सकें, इस हेतु काल बोध समाप्त कर दिया अर्थात ग्रन्थ का रचना काल ही नष्ट कर दिया या विवादास्पद बना दिया। अथवा रचनकार कौन है और उसका जीवन काल क्या था , में ही भ्रम उतपन्न कर दिया। इन सब काम में जर्मनी का मैक्स मुलर सबसे अधिक कुख्यात था। पर उसने भी वैदिक दर्शन के मूल को कभी विकृत नहीं किया। वो भी वैदिक दर्शन से अभिभूत था। पर अपने हो कर भी बौद्धिष्टों ने पूरी घृणा के साथ इस विकृति को अंजाम दिया।
आज़ादी के बाद कांग्रेस ने कम्युनिस्ट लेखकों और इतिहासकारो के मदद से नयी पीढ़ी में अपने धर्म ,दर्शन, परम्पराओं , लोकाचारों के प्रति अविश्वास , घृणा , और हीन भावना भर दी। और इस काम को अंजाम देने के लिए कम्युनिस्टों ने बौद्ध ग्रंथो का सहारा लिया। बौद्धों द्वारा विकृत किये गए वैदिक ग्रंथों को प्रचारित कर हिंदुत्व का दानवीकरण किया गया।
यदि भारत को अपनी सांस्कृतिक गरिमा एवं उच्च सामाजिक मानक पुनर्स्थापित करनी है तो उसे सनातन प्रकृति दर्शन को पुनः परिष्कृत , परिमार्जित कर उसके मूल स्वरुप में लाना होगा। इसके लिए आधुनिक संसाधनों से सुसज्जित, पूर्ण अधिकार प्राप्त वैदिक शोध विश्व विद्यालय की आवश्यकता है ,जिसे मानव संसाधन मंत्रालय एवं सांस्कृतिक मंत्रालय का पूर्ण सहयोग प्राप्त हो। जिनकी मदद के बिना हैं वैटिकन ,जर्मनी और लन्दन में सुरक्षित यहाँ से गायब की गयीं मूल पांडुलिपियां हमें प्राप्त नहीं होगीं।
धर्म दर्शन
(शैलेन्द्र दत्त कौशिक)
हमें अपने वैदिक प्रकृति दर्शन को बौद्धों द्वारा किये गए व्यभिचार से मुक्त कराना होगा। इन्होने वैदिक दर्शन की मूल विषय वस्तु को ही विकृत कर दिया। इससे घृणित और जघन्य कृत्य किसी ने भी वैदिको (हिन्दुओं ) के साथ नहीं किया।
हूणों के आक्रमण से नष्ट हुई तक्षशिला में वैदिक ज्ञान और संस्कृति का बड़ा अंश नष्ट हो गया। शेष बौद्धों ने क्रमिक रूप से नालंदा में विकृत कर नष्ट कर दिया । नालंदा ही वो अड्डा था जहां वैदिक ग्रंथो के साथ व्यभिचार होता था भला हो तुर्की हमलावर बख़्तियार ख़िलजी का जिसने नालंदा पर हमलाकर उसे नष्ट कर दिया वरना आज वैदिक प्रकृति दर्शन का कोई नाम लेवा नहीं होता।
मज़ेदार बात ये है की पूरे दुष्चक्र में स्वयं बुद्ध का कोई योगदान नहीं था। बुद्ध की मृत्यु के २५० से २७५ साल बाद अचानक बुद्ध के नाम पर ये सब कुकृत्य शुरू किया गया। इस पूरी बौध्द व्यवस्था के सूत्रधार भी नई पीढ़ी के विद्रोही, और प्रतिक्रियावादी ब्राह्मण ही थे जो कठिन वैदिक अनुशाषित जीवन पद्द्ति का पालन नहीं करना चाहते थे।
“बुद्ध एक सौतेली माँ द्वारा पाले गए असुरक्षित और अस्थिर भावनात्मक मनस्थिति के व्यक्ति थे जो मृत्यु भय से ग्रसित हो मृत्यु पर विजय प्राप्त करने हेतु घर से भागे थे। तमाम सत्संग और अंत में घोर तपस्या से उन्हे मात्र इस बात का बोध हुआ की मृत्यु असम्भावी है, दुःख देह का धर्म है सब कुछ क्षणिक है पुनर्जन्म कुछ नहीं होता। । खाओ पियो मस्त हो कर जीवन यापन करो। बुद्ध एक परिव्राजक थे। बस सन्यासिओं की तरह भ्रमण किया करते और कुछ नहीं। उन्होने अपने जीवन काल में किसी वाद या पंथ की स्थापना नहीं की।
यवन हमारे दर्शन को यूनान ले गए , अपने दार्शनिक दृष्टिकोण को इससे परिष्कृत किया, और अपनी शिक्षा व्यवस्था में इसको स्थान दिया। परन्तु विकृत नहीं किया .
मुस्लिम आक्रन्ताओं , अशिक्षित और बर्बर थे उन्हे ग्रंथो से मतलब नहीं था , उन्हे तो ग्रंथो का पालन करने वाले वैदिको को नष्ट करना था।
ईसाइयों ने भी वैदिकों के दर्शन के साथ दुरव्यवहार किया उन्होने विषयवस्तु चुराई और उनकी गणितीय व्याख्या कर पूरी की पूरी अपने नाम से प्रकाशित करवा दी। और हम इस कृत्य को चुनौती न दे सकें, इस हेतु काल बोध समाप्त कर दिया अर्थात ग्रन्थ का रचना काल ही नष्ट कर दिया या विवादास्पद बना दिया। अथवा रचनकार कौन है और उसका जीवन काल क्या था , में ही भ्रम उतपन्न कर दिया। इन सब काम में जर्मनी का मैक्स मुलर सबसे अधिक कुख्यात था। पर उसने भी वैदिक दर्शन के मूल को कभी विकृत नहीं किया। वो भी वैदिक दर्शन से अभिभूत था। पर अपने हो कर भी बौद्धिष्टों ने पूरी घृणा के साथ इस विकृति को अंजाम दिया।
आज़ादी के बाद कांग्रेस ने कम्युनिस्ट लेखकों और इतिहासकारो के मदद से नयी पीढ़ी में अपने धर्म ,दर्शन, परम्पराओं , लोकाचारों के प्रति अविश्वास , घृणा , और हीन भावना भर दी। और इस काम को अंजाम देने के लिए कम्युनिस्टों ने बौद्ध ग्रंथो का सहारा लिया। बौद्धों द्वारा विकृत किये गए वैदिक ग्रंथों को प्रचारित कर हिंदुत्व का दानवीकरण किया गया।
यदि भारत को अपनी सांस्कृतिक गरिमा एवं उच्च सामाजिक मानक पुनर्स्थापित करनी है तो उसे सनातन प्रकृति दर्शन को पुनः परिष्कृत , परिमार्जित कर उसके मूल स्वरुप में लाना होगा। इसके लिए आधुनिक संसाधनों से सुसज्जित, पूर्ण अधिकार प्राप्त वैदिक शोध विश्व विद्यालय की आवश्यकता है ,जिसे मानव संसाधन मंत्रालय एवं सांस्कृतिक मंत्रालय का पूर्ण सहयोग प्राप्त हो। जिनकी मदद के बिना हैं वैटिकन ,जर्मनी और लन्दन में सुरक्षित यहाँ से गायब की गयीं मूल पांडुलिपियां हमें प्राप्त नहीं होगीं।
धर्म दर्शन
(शैलेन्द्र दत्त कौशिक)
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