Saturday 21 December 2019

Issue of 15th december 2019

CAA :- will of the people executed through parliamentary process.


Wednesday 11 December 2019

अन्त तक अवश्य पढ़े !!!

यक्ष : राजन, भारत नामक देश की संसद में पारित नागरिक संशोधन बिल की व्यख्या करों ?

युधिष्ठिर :  नागरिक संशोधन बिल का सीधा सम्बंध  सम्पूर्ण भारत में लागू होने वाले राष्ट्रीयता नागरिक पंजीकरण ( NRC) के प्रावधानों से है, यक्ष ! पंजीकरण रजिस्टर का उद्द्येश्य भारत में घुसपैठियों को चिन्हित करना है।  फिर नागरिक संशोधन बिल के प्रावधानों से उन्हें भारत की नागरिकता दे भारत की जनसख्याँ में वृद्धि कर इसे नर्क में बदलना है। 

यक्ष : और स्पष्ट करो राजन !

युधिष्ठिर : वर्तमान भारत में करोडो घुसपैठिये रह रहे हैं।  घुसपैठियों को चिन्हित कर भारत सरकार उनका क्या करेगी ? कुछ नहीं कर सकती !
क्योकि जिन देशों से ये भाग कर आये है, वो राष्ट्र इन्हें कभी  नहीं स्वीकार करेगें। अतः उन घुसपैठियों को शरणार्थी बना , उन्हें नागरिकता दी जाएगी फिर उपलब्ध  सीमित संसाधनों और आय कर दाताओं की कड़ी मेहनत की कमाई को विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं, जैसे मुफ्त स्वास्थ योजना, मुफ्त आवास योजना, मुफ्त शिक्षा योजना, मुफ्त अन्न योजना,  तमाम BPL योजनाओ के माध्यम से इन लोगो पर व्यय किया जायेगा।
एक बहुत बड़ा वंचित वर्ग खड़ा किया जायेगा जो पीढ़ी दर पीढ़ी परजीवियों की तरह पल कर, एक बड़ी जनसख्याँ का निर्माण करेगा।  जिससे भारत सदैव औसत से भी नीची क्षमता वालों का देश हो विकासशील देश की श्रेणी में ही रहेगा, विकसित कभी नहीं बन पायेगा।

यक्ष : राजन देश में  इसके विरोध का कारण क्या है।

युधिष्ठिर : यक्ष, मुसलमानो को इस सुविधा से वंचित रख, उनके भारत को मुस्लिम बहुल देश बनाने के सपनों पर कुठाराघात किया गया है।
अब जनसांख्यिकी संतुलन अपने पक्ष में करने हेतु उन्हें चारों शादियां कर  पत्नियों पर और दबाव बनाना होगा।   भारत को समूल नष्ट करने में प्रयासरत,  कांग्रेस,  तृणमूल जैसे संघठनो को, एक मात्र मुसलमानो का सहारा था, वो भी  छिन गया। केवल ईसाइयों की मदद से इस देश को नष्ट करने में उनको मुश्किल होगी।

यक्ष : साधो, साधो, साधो राजन !!!

Saturday 7 December 2019

Issue : 1 December 2019

India is an "anarchy state" because of weak central Govt. and corrupt, higher judicial system .

Friday 15 November 2019

Issue of 15th November 2019.

Mythological faith is a reality and reality must take shape : Supreme court.

Monday 11 November 2019

राम मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार को लेकर बहुत भ्रम है
कि कोर्ट में फैसले का आधार क्या है ?
फ़ैसला पढ़ने  के बाद स्पष्ट होता है कि :
कोर्ट ने न पौराणिकता को आधार माना, न ऐतिहासिकता को आधार माना, और न ही  वास्तविकता को आधार माना है,
कोर्ट ने केवल कब्ज़े और कब्ज़े को आधार माना  है,
और कोर्ट ने "आस्था को  मूर्त रूप में  "राम लाला विराजमान "के स्वरुप  को स्वीकार कर कब्ज़े के आधार पर मालिकान हक़ दिया है। (  विराजमान अर्थात बा- कब्ज़ा )
 और कब्ज़े का आधार वर्ष २२ /२३ दिसम्बर १९४९ को निर्धारित किया है। 
क्योकि सरकारी दस्तावेज में रामलला जनवरी १९५० से, एक रिसीवर, अध्यक्ष (  नगर निगम फैजाबाद-कम- अयोध्या ) के संरक्षण में उस भवन में काबिज़ है, और नियमित पूजा - पाठ प्राप्त कर रहे हैं।

हम ऋणी है श्री त्रिलोकी नाथ पाण्डे के, जिन्होने "रामलला विराजमान" को अदालत में जीवंत रूप दिया।
हम ऋणी है साधू  अभिराम दास की परिकल्पना और महती प्रयास के, जिससे रामलला की मूर्ति उस भवन में प्रगट हुई।  हम ऋणी है उनके सहयोगी साधू  श्री बिंदेश्वरी प्रसाद के।
हम ऋणी है तत्कालीन  सिटी मजिस्ट्रेट श्री गुरु दत्त सिंह के, हम ऋणी है,  जिलाधिकारी  श्री के. के. नायर के जिन्होने साधू  अभिराम दास की परिकल्पना को मूर्त रूप दिया।
हम ऋणी है उस अनजान हिन्दू  चौकीदार के जिसने  अपनी ड्यूटी काल में भवन का
ताला खोल, प्रभु के ऋण से उऋण हो गया। 
हम ऋणी है उस अनजान मुस्लिम चौकीदार के जिसने इस परिकल्पना को सरकारी अधिकारियो के समक्ष सत्य घटना के रूप में दर्ज़ कराया। 

Saturday 2 November 2019

Issue of 1st November 2019.
"Nationalism a non progressive thought process"
who is promoting and propagating this outlook ?

"राष्ट्रवाद", विस्तारवाद का सबसे बड़ा शत्रु है !
विस्तारवाद की विकृत व्याख्या प्रगतिशील चिंतन कहलाती है !


Wednesday 23 October 2019

International treaties in organizations losing their committed relevance.Issue of 15th October 2019


Wednesday 16 October 2019

राम मंदिर फैसले द्वारा , इतिहास में प्रवेश करने की हड़बड़ी में मुख्य न्यायधीश के नेतृत्व में, कम्युनिस्ट, आग्रही, संस्कृति द्रोही, सबरी माला मंदिर की परम्परा को नष्ट करने वाले समलैंगिकता के पोषक, व्यभिचार के समर्थक, औसत बौद्धिक स्तर के आग्रही न्यायाधीशों से बहुत अच्छे फैसले की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
सबसे पहले विवाद का स्वरुप विषय वस्तु तय करनी होगी।

ज़मीन का बटवारा नहीं हो सकता, क्योंकि हाई कोर्ट के फैसले को स्टे कर विवाद स्वीकार करते समय  सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस लोढ़ा ने  इसी आधार पर मुकदमा स्वीकार किया था, कि ये फ़ैसला सिरे से ही गलत है, ये विवाद ज़मीन बॅटवारे का नहीं है, न ही किसी वादी ने भूमि बाँटने की बात कही है, ये विवाद भूमि के मालिकाना हक़ का है।
मज़ेदार बात ये हैं की  विवादित भूमि के भू अभिलेख दोनों पक्षों के पास नहीं हैं। और  १८८६ से ले कर अब तक जितने भी मुकदमें लड़े गए सब कब्ज़े के लिए थे , मालिकान हक या टाइटल के लिए नहीं।
अब निर्णय का आधार क्या होगा ? यक्ष प्रश्न हैं
अब दो मुख्य  मुद्दे हैं जिससे फ़ैसले पर  पंहुचा जा सकता है,
१ ) कब्ज़े के आधार पर !
 कब्ज़े का आधार वर्ष कौन सा मानते हैं, ये निश्चित करेगा की कब्ज़ा किसको
 दिया जाये। २३ दिसंबर १९४९ से श्री  राम चंद्र विराजमान का मुख्य गुम्बद में   कब्ज़ा है। वो एक मस्जिद के ढांचे पर काबिज़ है, है न अजीब !!
यदि, २३ दिसंबर १९४९ से पहले के कब्ज़े को आधार बनाया गया तो गुम्बद वाला भाग वफ्फ बोर्ड के कब्ज़े में था। परन्तु वर्तमान कब्ज़ा ही  आधार माना जाता है। 
दूसरा,  गुम्बद से एकदम लगी आसपास की भूमि  निर्विवाद रूप से निर्मोही अखाड़े की है और वो उसपर काबिज़ था और है। अब ये प्रश्न उठता है कि मस्जिद के ढांचे से लगी भूमि मंदिर की क्यों है ?
फिर , निर्मोही  अखाड़े से लगी बाहर ज़मीन जहाँ भूमि पूजन हुआ है कब्रिस्तान बताया जा रहा है।  मंदिर से सटा कब्रिस्तान क्या कर रहा है। ये कैसे हुआ ?
कफ़न दफ़न का प्रमाण नहीं हैं।
मुकदमे का एक पहलु  कि ज़मीन बटेगी नहीं, या तो राम लला विराजमान को मिलेगी या निर्मोही आखाड़े को।  अब मुकदमे में राम लला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा आमने सामने हैं। भूमि की समग्रता के लिए एक को अपना अस्तित्व समाप्त करना होगा।
राम लला विराजमान को कानूनी अस्तित्व साबित करने मे पक्षकार वकील असफल रहें है, ये बिडंबना ही है कि रामलला के पक्षकार सभी वकील औसत से भी नीचे  स्तर के हैं। 
२ ) भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट । 
तीन रिपोर्ट हैं ! पता नहीं किसको मान्यता देते हैं। वैसे दो मंदिर के पक्ष में हैं  एक २००३ वाली,  थोड़ा सा  भ्रमित करती है, क्योकि बौद्ध और जैन भी वहाँ मंदिर नहीं बल्कि अपने विहार होने का दावा कर रहे हैं।
दो गौडं मुद्दे हैं
१ ) पौराणिक मानक मंदिर के पक्ष में है।
२ ) ऐतिहासिक मानक मस्जिद के पक्ष में है।
यक्ष प्रश्न ?
क्या भाजपा इतना शानदार मुद्दा इतना आसनी से समाप्त होने देगी ?
शेष राम जाने !!!

Sunday 8 September 2019

मेरे इन शब्दों से कुछ लोग आहात होगें। पर क्या करूँ मेरा बोध इसे ही सत्य पता है। क्षमा प्रार्थी हूँ।

हमें अपने वैदिक प्रकृति दर्शन को बौद्धों द्वारा किये गए व्यभिचार से मुक्त कराना होगा। इन्होने वैदिक दर्शन की मूल विषय वस्तु को ही विकृत कर दिया। इससे घृणित और जघन्य कृत्य किसी ने भी वैदिको (हिन्दुओं ) के साथ नहीं किया।
हूणों के आक्रमण से नष्ट हुई तक्षशिला में वैदिक ज्ञान और संस्कृति का बड़ा अंश नष्ट हो गया। शेष बौद्धों ने क्रमिक रूप से नालंदा में विकृत कर नष्ट कर दिया । नालंदा ही वो अड्डा था जहां वैदिक ग्रंथो के साथ व्यभिचार होता था भला हो तुर्की हमलावर बख़्तियार ख़िलजी का जिसने नालंदा पर हमलाकर उसे नष्ट कर दिया वरना आज वैदिक प्रकृति दर्शन का कोई नाम लेवा नहीं होता।
मज़ेदार बात ये है की पूरे दुष्चक्र में स्वयं बुद्ध का कोई योगदान नहीं था। बुद्ध की मृत्यु के २५० से २७५ साल बाद अचानक बुद्ध के नाम पर ये सब कुकृत्य शुरू किया गया। इस पूरी बौध्द व्यवस्था के सूत्रधार भी नई पीढ़ी के विद्रोही, और प्रतिक्रियावादी ब्राह्मण ही थे जो कठिन वैदिक अनुशाषित जीवन पद्द्ति का पालन नहीं करना चाहते थे।
“बुद्ध एक सौतेली माँ द्वारा पाले गए असुरक्षित और अस्थिर भावनात्मक मनस्थिति के व्यक्ति थे जो मृत्यु भय से ग्रसित हो मृत्यु पर विजय प्राप्त करने हेतु घर से भागे थे। तमाम सत्संग और अंत में घोर तपस्या से उन्हे मात्र इस बात का बोध हुआ की मृत्यु असम्भावी है, दुःख देह का धर्म है सब कुछ क्षणिक है पुनर्जन्म कुछ नहीं होता। । खाओ पियो मस्त हो कर जीवन यापन करो। बुद्ध एक परिव्राजक थे। बस सन्यासिओं की तरह भ्रमण किया करते और कुछ नहीं। उन्होने अपने जीवन काल में किसी वाद या पंथ की स्थापना नहीं की।
यवन हमारे दर्शन को यूनान ले गए , अपने दार्शनिक दृष्टिकोण को इससे परिष्कृत किया, और अपनी शिक्षा व्यवस्था में इसको स्थान दिया। परन्तु विकृत नहीं किया .
मुस्लिम आक्रन्ताओं , अशिक्षित और बर्बर थे उन्हे ग्रंथो से मतलब नहीं था , उन्हे तो ग्रंथो का पालन करने वाले वैदिको को नष्ट करना था।

ईसाइयों ने भी वैदिकों के दर्शन के साथ दुरव्यवहार किया उन्होने विषयवस्तु चुराई और उनकी गणितीय व्याख्या कर पूरी की पूरी अपने नाम से प्रकाशित करवा दी। और हम इस कृत्य को चुनौती न दे सकें, इस हेतु काल बोध समाप्त कर दिया अर्थात ग्रन्थ का रचना काल ही नष्ट कर दिया या विवादास्पद बना दिया। अथवा रचनकार कौन है और उसका जीवन काल क्या था , में ही भ्रम उतपन्न कर दिया। इन सब काम में जर्मनी का मैक्स मुलर सबसे अधिक कुख्यात था। पर उसने भी वैदिक दर्शन के मूल को कभी विकृत नहीं किया। वो भी वैदिक दर्शन से अभिभूत था। पर अपने हो कर भी बौद्धिष्टों ने पूरी घृणा के साथ इस विकृति को अंजाम दिया।

आज़ादी के बाद कांग्रेस ने कम्युनिस्ट लेखकों और इतिहासकारो के मदद से नयी पीढ़ी में अपने धर्म ,दर्शन, परम्पराओं , लोकाचारों के प्रति अविश्वास , घृणा , और हीन भावना भर दी। और इस काम को अंजाम देने के लिए कम्युनिस्टों ने बौद्ध ग्रंथो का सहारा लिया। बौद्धों द्वारा विकृत किये गए वैदिक ग्रंथों को प्रचारित कर हिंदुत्व का दानवीकरण किया गया।

यदि भारत को अपनी सांस्कृतिक गरिमा एवं उच्च सामाजिक मानक पुनर्स्थापित करनी है तो उसे सनातन प्रकृति दर्शन को पुनः परिष्कृत , परिमार्जित कर उसके मूल स्वरुप में लाना होगा। इसके लिए आधुनिक संसाधनों से सुसज्जित, पूर्ण अधिकार प्राप्त वैदिक शोध विश्व विद्यालय की आवश्यकता है ,जिसे मानव संसाधन मंत्रालय एवं सांस्कृतिक मंत्रालय का पूर्ण सहयोग प्राप्त हो। जिनकी मदद के बिना हैं वैटिकन ,जर्मनी और लन्दन में सुरक्षित यहाँ से गायब की गयीं मूल पांडुलिपियां हमें प्राप्त नहीं होगीं।

धर्म दर्शन
(शैलेन्द्र दत्त कौशिक)

Wednesday 4 September 2019

Issue of 1st September 2019.
Weak & emotional arguments in favour of Ram temple and counter claim by Buddhist on ASI report, making things more vague for Hindus in Supreme court .
Nirmohi akhada the main claimant is countering the claim of Ram Lala virajmaan.
Ram Lala virajmaan and Nirmohi akhada both have no revenue record to prove there claim.

Monday 3 June 2019

Saturday 2 March 2019

The cause of oppositions desperation depression.
Modi has managed, to prove the equation.
Hinduism = nationalism

Issue of 1st March 2019

Sunday 3 February 2019

Index of human development and Index of human happiness Contradicting each other.

Friday 25 January 2019

Special issue on republic day 2019.

Pathos of Indian constitution, anybody, even a lekhpal can amend it, at its discretion.